मैं भूमि धरा धरती मैं सबका भार उठाती हूँ
मैं सब कुछ सहती जाती हूँ
मैं सब कुछ सहती जाती हूँ
मेरे पेड़, मेरी हवा, मेरा पानी
नर सब कुछ पाना चाहता है
प्रहार जो होते हैं मुझ पर
वो हृदय बताना चाहता है
मेरे पक्षी मेरे जन्तु सब एक गुहार लगाते हैं
सब लूट लिया है नर ने
अब वह संसार से जाना चाहतें है
क्या हो अगर नर सुन ले इनसे
हरयाली मैं चहचहाती बातें
क्या हो अगर नर सीख ले इनसे
अम्बर दरिया पहाड़ की बातें
मैं वक्ष चीर दे दूंगी सब कुछ
ये संपत्ति संतानों मैं लुटानी है
ये सीख तुम्हें सिखानी है
ये सीख तुम्हें सिखानी है
माया को पाया मुझे गवाया
अब बात मैं अपनी सुनाती हूँ
मैं भूमि धरा धरती नर तुझको आज बताती हूँ
तू मुझसे है मैं तुझसे नहीं
इसे जग संसार बताना है
तू भूल गया तू मुझसे है
बस तुझको याद ददलाना है
मैं साहसी मैं दयावान मैं
धरये धरे सब बैठी हूँ
ना कर प्रहार तू सुन पुकार
मैं आस लगायी बैठी हूूँ
जाग सवेरा देख तू मेरा
मैं तुझे बुलाने आयी हूूँ
तू मेरे आँगन का अंकुर
मैं तुझे जगाने आयी हूूँ
मैं तुझे जगाने आयी हूूँ
मैं भूमि धरा धरती,
मैं सबका भार उठाती हूँ
मैं सब कुछ सहती जाती हूँ
मैं सब कुछ सहती जाती हूँ
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